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Friday, 18 September 2020
Tuesday, 11 September 2018
Monday, 6 August 2018
तर्क का बीजगणित
तर्क का बीजगणित
तर्कशास्त्र ,तर्क प्रक्रिया के नियमों मे अंतर्गत िदिए गए कथनों से मान्य निष्कर्ष पर पहुॅचने का एक िविशेष तकनीकी रूप है।
तर्क वह माध्यम और रूप प्रदान करता है जिससे मनुष्य द्वारर सोचने की प्रकिया व्यवस्थित क्रम से हाेे सके अर्थात समस्या के हल का माध्यम प्राप्त हो सकेा वैसे तर्क की प्रकिया सभी िविषयों पर लागू होती है,परन्तु गणित में हम िनिरंतर अपने बनाए हुए कथनों की उपपत्त्यिॉ देते रहते है।उपपत्त्यिॉ देने की प्रकिया पूर्णत: तार्किक होती है। इन प्रकियओं के अध्ययन का विषय तर्कशास्त्र है।
प्रस्तुत अध्याय में हम प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र का प्रारंभिक अध्ययन करेंगे िजिसके अंतर्गत प्रतीकाेेंेंऔर गणिता की संक्रियाओं का अध्ययन तथा िविशलेषण िकिया जाता है। इस अध्ययन का मूल उद्देश्य गणितीय उपपत्त्िा की व्याख्या करना है।जो वास्तव में गणितीय कथनों कस सउद्देश्य अनुक्रम है।इसके िलिए तार्किक वाक्यों एवं तार्किक संयोजकों की सहायता ली जाती है। िजिसे हम गणित की भाषा कहते है।
1840 में िब्रिटिश गणितज्ञ डीीमार्गन ने तर्क के िविकास पर कार्य िकिया।डीीमार्गन भारत में पैदा हुए थे तथा इ्रग्लैण्ड में उनकी िशिक्षा हुई।1847 में डी मागन के कार्य के बाद में जार्ज बूल ने एक पुस्तक प्रकाशित की िजिसका शीर्षक था the methemarical analysis of logic!
यह ग्रंथ तर्कशास्त्र में प्रयुक्त गणितीय िविश्लेषण था। लगभग एक शताब्दी तक यह अन्वेषण गुमनामी केे अंधेरे में रहा।सन 1938 में क्लाडे ई.शेनन ने यह बताया िकि बूलीय बीजगणित के अनेक िनियमों का उपयोग टेलीफोन जाल में सरलीकरण के अत्यंत्ा महत्वपूर्ण है।सरलीकरण की इस प्रकिया का उपयोग अब कम्प्यूटर के परिपथों के सरलीकरण में भी होने लगा है ।इस प्रकार यह बीजगणित अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया ।
बूलीय बीजगणित व्यापक रूप से (1,0) फलन के रूप में जानी जाती है।पहले इनका उपयोग उन कथनों में िकिया जाता था जो सत्य या असत्य होते थे परंतु वर्तमान में इसका उपयोग िस्विचन परिपथ ,जो या तो खुले हों या बंद हों में िकिया जाता है।
बूलीय बीजगणित में मुख्यत: तीन संक्रियाऍ होती है- (1) 'तथा' (2) 'अथवा') (3) 'नही' िजिन्हें प्रतीक रूप में क्रमश: v एवं ^ से िलिखेंगे।इन प्रतीकों को क्रमश: हम '+' , '.' या ' ' ' भी िलखेंगे।
तर्कशास्त्र ,तर्क प्रक्रिया के नियमों मे अंतर्गत िदिए गए कथनों से मान्य निष्कर्ष पर पहुॅचने का एक िविशेष तकनीकी रूप है।
तर्क वह माध्यम और रूप प्रदान करता है जिससे मनुष्य द्वारर सोचने की प्रकिया व्यवस्थित क्रम से हाेे सके अर्थात समस्या के हल का माध्यम प्राप्त हो सकेा वैसे तर्क की प्रकिया सभी िविषयों पर लागू होती है,परन्तु गणित में हम िनिरंतर अपने बनाए हुए कथनों की उपपत्त्यिॉ देते रहते है।उपपत्त्यिॉ देने की प्रकिया पूर्णत: तार्किक होती है। इन प्रकियओं के अध्ययन का विषय तर्कशास्त्र है।
प्रस्तुत अध्याय में हम प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र का प्रारंभिक अध्ययन करेंगे िजिसके अंतर्गत प्रतीकाेेंेंऔर गणिता की संक्रियाओं का अध्ययन तथा िविशलेषण िकिया जाता है। इस अध्ययन का मूल उद्देश्य गणितीय उपपत्त्िा की व्याख्या करना है।जो वास्तव में गणितीय कथनों कस सउद्देश्य अनुक्रम है।इसके िलिए तार्किक वाक्यों एवं तार्किक संयोजकों की सहायता ली जाती है। िजिसे हम गणित की भाषा कहते है।
1840 में िब्रिटिश गणितज्ञ डीीमार्गन ने तर्क के िविकास पर कार्य िकिया।डीीमार्गन भारत में पैदा हुए थे तथा इ्रग्लैण्ड में उनकी िशिक्षा हुई।1847 में डी मागन के कार्य के बाद में जार्ज बूल ने एक पुस्तक प्रकाशित की िजिसका शीर्षक था the methemarical analysis of logic!
यह ग्रंथ तर्कशास्त्र में प्रयुक्त गणितीय िविश्लेषण था। लगभग एक शताब्दी तक यह अन्वेषण गुमनामी केे अंधेरे में रहा।सन 1938 में क्लाडे ई.शेनन ने यह बताया िकि बूलीय बीजगणित के अनेक िनियमों का उपयोग टेलीफोन जाल में सरलीकरण के अत्यंत्ा महत्वपूर्ण है।सरलीकरण की इस प्रकिया का उपयोग अब कम्प्यूटर के परिपथों के सरलीकरण में भी होने लगा है ।इस प्रकार यह बीजगणित अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया ।
बूलीय बीजगणित व्यापक रूप से (1,0) फलन के रूप में जानी जाती है।पहले इनका उपयोग उन कथनों में िकिया जाता था जो सत्य या असत्य होते थे परंतु वर्तमान में इसका उपयोग िस्विचन परिपथ ,जो या तो खुले हों या बंद हों में िकिया जाता है।
बूलीय बीजगणित में मुख्यत: तीन संक्रियाऍ होती है- (1) 'तथा' (2) 'अथवा') (3) 'नही' िजिन्हें प्रतीक रूप में क्रमश: v एवं ^ से िलिखेंगे।इन प्रतीकों को क्रमश: हम '+' , '.' या ' ' ' भी िलखेंगे।
बलीय बीजगणित का प्रत्येेक फलन िजिसमें अचर न हो को ,एक िवियोजनीय प्रसामान्य रूप में व्यक्त कर सकते है।
बलीय बीजगणित का प्रत्येेक फलन िजिसमें अचर न हो को ,एक िवियोजनीय प्रसामान्य रूप में व्यक्त कर सकते है।
उप्पत्ति-
परिभाषा से हम जानते है कि फलन का िवियोजनीय प्रसामान्य रूप चरों के गुणनफलों के योग के रूप में प्रदर्शित होता है।
माना f(x1,x2.....xn) बूलीय बीजगणित B(+,.,') मेंं n चरों x1,x2.... xn का एक अचर रहित फलन है ।प्रथम चरण मेें व्यंजक या फलन से ( यदि हो तो) डी-मार्गन िनियम का प्रयोग कर पूरक (') को खाेलते है। िद्वतीय चरण में ,यदि आवश्यक हो ,तो वितरण नियम का प्रयोग कर (.) का (+) पर िवितरण करते है।
अब तृतीय चरण में एक चर माना xi के साथ अन्य चर लाने के िलिए xi को xi1लिखते है। तत्प श्चात् xi1 के स्थान पर xi(xj+xj') लिखते हैा जिससे फलन में xixj+xixj' गुणन के योग में आते है।
इसी प्रक्रिया को दोहराकर सभी चर x या x'के रूप में उपस्थित रहते है!
अंतिम रूप से अब पुनरावृत्त्ि वाले पदों काेे केवल एक बार (वर्गसम िनियम से)लिखा जाता है। इस प्रकार से िदिया गया फलन िवियोजनीय प्रसामान्य रूप मेें परिवर्तित होता है।
उप्पत्ति-
परिभाषा से हम जानते है कि फलन का िवियोजनीय प्रसामान्य रूप चरों के गुणनफलों के योग के रूप में प्रदर्शित होता है।
माना f(x1,x2.....xn) बूलीय बीजगणित B(+,.,') मेंं n चरों x1,x2.... xn का एक अचर रहित फलन है ।प्रथम चरण मेें व्यंजक या फलन से ( यदि हो तो) डी-मार्गन िनियम का प्रयोग कर पूरक (') को खाेलते है। िद्वतीय चरण में ,यदि आवश्यक हो ,तो वितरण नियम का प्रयोग कर (.) का (+) पर िवितरण करते है।
अब तृतीय चरण में एक चर माना xi के साथ अन्य चर लाने के िलिए xi को xi1लिखते है। तत्प श्चात् xi1 के स्थान पर xi(xj+xj') लिखते हैा जिससे फलन में xixj+xixj' गुणन के योग में आते है।
इसी प्रक्रिया को दोहराकर सभी चर x या x'के रूप में उपस्थित रहते है!
अंतिम रूप से अब पुनरावृत्त्ि वाले पदों काेे केवल एक बार (वर्गसम िनियम से)लिखा जाता है। इस प्रकार से िदिया गया फलन िवियोजनीय प्रसामान्य रूप मेें परिवर्तित होता है।
Tuesday, 24 July 2018
percentage
percentage:-
100% = 1
90% =9/10
80% = 80/100 =4/5
70% = 70/100 =7/10
60% = 60/100 =3/5
50% = 50/100 =1/2
40% = 40/100 = 2/5
30% = 30/100 =3/10
25% = 25/100 =1/4
20% = 20/100 =1/5
10% =10/100 =1/10
other form
1/2 =50%
1/3 =33.33%
1/4 =25%
1/5 =20%
1/6 =16.66%
1/7 =14.28%
1/8 =12.5
1/9 =11.11%
1/10 =10%
1/11 =9.99%
If the price of a commodity increases by a% then the reduction in sonsumption so as not to increase the expenditure is:
( p/p+100)*100
question
1. A batsman scored 110 runs which included 3 boundaries and 8 sixes what percent of his total score did he make by running between the wickets?
A. 45% b 45 5/11 % c. 54 6/11% D 55%
adding soon...
100% = 1
90% =9/10
80% = 80/100 =4/5
70% = 70/100 =7/10
60% = 60/100 =3/5
50% = 50/100 =1/2
40% = 40/100 = 2/5
30% = 30/100 =3/10
25% = 25/100 =1/4
20% = 20/100 =1/5
10% =10/100 =1/10
other form
1/2 =50%
1/3 =33.33%
1/4 =25%
1/5 =20%
1/6 =16.66%
1/7 =14.28%
1/8 =12.5
1/9 =11.11%
1/10 =10%
1/11 =9.99%
If the price of a commodity increases by a% then the reduction in sonsumption so as not to increase the expenditure is:
( p/p+100)*100
question
1. A batsman scored 110 runs which included 3 boundaries and 8 sixes what percent of his total score did he make by running between the wickets?
A. 45% b 45 5/11 % c. 54 6/11% D 55%
adding soon...
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